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***नीरद और नीरज***

Saurabh Satarsh
Saurabh Satarsh
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***नीरद और नीरज***
(सच से जरा आगे)
नीम के नीचे था नीरज।
नए युग का था वो तीरज।
तीलीयों मे तान भरता,
आँख भींच थामे धीरज।।
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वह नहीं था दूर द्रष्टा।
था मगर मजबूर द्रष्टा।
पंचरो को ठीक करता,
हाय! क्यों है क्रूर श्रष्टा।।
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था चिथडा वो तन पे लादे।
हालातों से करके फसादे।
साइकिल को ठीक करता,
पर थे अडिग उसके इरादे।।
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था बडा, बारह बरस का।
पिता था आदी चरस का।
वह पूरे घर का पेट भरता,
चाह पारस के परस का।।
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बरसात की शुरूआत थी।
भीषण भयावह बात थी ।
थे दुबके सब, वह भीगता,
कैसी अजब सौगात थी।।
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बारिश में ना हुई कमाई।
नीरज पर आफत सी आई।
सुना है मरता क्या ना करता,
राशन में तब सेंध लगाई।।
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सहसा ही एक शोर हुआ।
तत्क्षण ही लतखोर हुआ।
था पंचरो को ठीक करता,
आज वह महाचोर हुआ।।
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कई ऐसे नीरज और भी है।
कारण युग का दौर भी है।
आइए हम उनको भी समझे,
जो राष्ट्र के सिरमौर भी है।
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©सौरभ सतर्ष
#पढना_मुझे_भी

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