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☆☆कैसे बनाऊँगा☆☆
रात के अंतिम पहर में,
भाव के भीषण भँवर में,
उलझा यादों के लहर में,
जल रहा हूँ अपने घर में,
सोचता हूँ कल तुम्हें कैसे सजाऊँगा।
सबसे बेहतर मैं तुम्हें कैसे बनाऊँगा।।
हर तरफ घनघोर तम है,
दशा भी कुछ कुछ विषम है,
मोल करती हर कलम है,
आँखों में पानी भी कम है,
हक तुम्हारा तुमको मैं कैसे दिलाऊँगा।
सबसे बेहतर मैं तुम्हें कैसे बनाऊँगा।।
दृग कोर से अश्रु ढ़रे है,
पीर अनुभव के परे है,
वेदना के स्वर भरे है,
हम ही तो फिर से मरे है,
सोचता हूँ कि व्यथा कैसे मिटाऊँगा।
सबसे बेहतर मैं तुम्हें कैसे बनाऊँगा।।
मुश्किल बहुत हालात है,
दुश्मन लगाए घात है,
होता नहीं प्रभात है,
यहाँ रात ही बस रात है,
तुमको ही फिर तुमसे मैं कैसे मिलाऊँगा।
सबसे बेहतर मैं तुम्हें कैसे बनाऊँगा।।
जाना तुम्हें उस पार है,
उस पार जीवन द्वार है,
किश्ती फँसी मझधार है,
बस हौसला आधार है,
टूटी किश्ती पार मैं कैसे लगाऊँगा।
सबसे बेहतर मैं तुम्हें कैसे बनाऊँगा।।
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©सौरभ सतर्ष
#कभी_पढ़ना_मुझे
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